235, रौद्र ध्यान - मृषानंदी ,स्तेयानन्दी व परिग्रहानन्दी का स्वरूप । पृष्ठ क्र -159 भावदीपिका Dainik Swadhyay 405 подписчиков Скачать
235, रौद्र ध्यान - मृषानंदी ,स्तेयानन्दी व परिग्रहानन्दी का स्वरूप । पृष्ठ क्र -159 भावदीपिका Скачать
233,सर्वोत्कृष्ट अंतरंग तप - ध्यान । ध्यान के भेद - दुःख स्वरूप आर्त ध्यान से कैसे बचें ? पृष्ठ -159 Скачать
231,परिणामों की स्थिरता के लिए वैयावृत्य तप । (क्या है सच्ची वैयावृत्ति ? )पृ - 159 भावदीपिका Скачать
227,धन्य! मुनिराजों की तप साधना । रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन एवं कायक्लेश ।पृष्ठ क्र-157 भावदीपिका Скачать
223,धन्य!मुनिराज की चर्या।केशलुंचन, एकभुक्ति,खड़े-खड़े आहार ग्रहण ,अदन्तधोवन तथा अन्य विशेष चर्या । Скачать
222,धन्य ! मुनिराज की चर्या ।नग्नता,भूमिशयन, अस्नानव्रत,केशलुंचन इत्यादिसात मूलगुण पृ-154 भावदीपिका Скачать
219,धन्य ! मुनिराज की चर्या। एषणा समिति-32 प्रकार का अंतराय टालकर आहार लेना ।पृष्ठ- 152 भावदीपिका Скачать
218,धन्य!मुनिराज की चर्या।एषणा समिति-32 प्रकार के अंतराय को टालकर आहार लेना।पृष्ठ क्र- 155,156 Скачать
217,धन्य!मुनिराज की चर्या।एषणा समिति -अशनसम्बन्धी तथा संयोजन सम्बन्धी दोष टालकर आहार लेना।पृ-153 Скачать
216,धन्य ! मुनिराज की चर्या।एषणा समिति- दातार तथा यति आश्रित दोषों को टालकर आहार लेना।पृष्ठ- 150 Скачать
205,अभ्यंतर परिग्रह होने पर ही बाह्य पदार्थों को 'परिग्रह' संज्ञा प्राप्त होती है। 24 परिग्रह पृ-144 Скачать
202,सभी प्रतिमाओं में आगमनुकूल बाह्य प्रवृत्ति तथा भावानुकूल निर्जरा कैसे होती है?पृ- 142 भावदीपिका Скачать
198,अंतरंग परिग्रह त्याग बिन बहिरंग परिग्रह त्याग कैसा ? परिग्रह त्याग प्रतिमा ।पृष्ठ क्र- 140 Скачать
190, शिक्षाव्रत - भोगोपभोग परिमाण ,अतिथिसंविभाग व्रत व दाता के सात गुण । पृष्ठ - 137 भावदीपिका Скачать
180, ये भी दान है...समदत्ति,दयादत्ति और सर्वदत्ति, हम सबको यथाशक्ति इन्हें करना ही चाहिए ।पृष्ठ-129 Скачать
179, दान के संदर्भ में उठने वाले कुछ प्रश्न व वीतराग धर्म प्रभावनार्थ कुछ सावधानियां।पृष्ठ -129 Скачать
174, स्व आत्मप्रभावक ही बाह्य में सच्चे अर्थ में जिनमत की प्रभावना करता है। पृष्ठ - 125 भावदीपिका Скачать
170,सम्यक्त्व की घातक तीन मूढ़ता- देवमूढता, गुरुमूढता व समय मूढ़ता का स्वरूप । पृष्ठ - 122 भावदीपिका Скачать
163, कार्य का होना ,नही होना अन्तराय कर्म के क्षयोपशम के अनुसार है , मैं वृथा ही सुखी दुःखी होता हु। Скачать
154, अंगबाह्य के 14 प्रकीर्णकों का स्वरूप । सबकुछ समता ( सामायिक )के लिए ।पृष्ठ क्र - 105, 106 Скачать
152,,कर्मवाद,प्रत्याख्यान,विद्यानुवाद,कल्याणवाद,प्राणवाद, क्रियाविशाल व लोकबिन्दुसार पूर्व का स्वरूप Скачать
151, आत्मप्रवाद पूर्व,कर्मप्रवाद पूर्व ,प्रत्याख्यान पूर्व व विद्यानुवाद पूर्व का स्वरूप । पृ- 104 Скачать
147, अस्ति-नास्ति प्रवाद पूर्व ( स्याद्वाद )एवं ज्ञान प्रवाद पूर्व का स्वरूप । पृष्ठ क्र - 101 Скачать
146, 14 पूर्वों का स्वरूप । उत्पाद पूर्व,अग्रायणी पूर्व वीर्यानुवाद पूर्व का स्वरूप ।पृष्ठ क्र - 100 Скачать
140, अवधिज्ञान का स्वरूप । अनेक ज्ञेयों को जानने में मुझे अच्छा लगता है क्या इससे मेरा भला होगा ? Скачать
139, श्रुतज्ञान व अवधिज्ञान का स्वरूप । मेरा नुकसान अल्प ज्ञान से ,कुज्ञान से या मिथ्यात्व से ? Скачать
127, संसार जिसे खुशहाली कहता है,वो सारी खुशहाली सम्यक्त्वी के ही झोले में आती है । लेश्याभाव का फल Скачать
124,मुक्तिमार्ग में शुभाशुभ दोनों लेश्याएं बाधक ही है,क्योंकि मिथ्यात्वी के भी शुक्ल लेश्या होती है। Скачать
123, हे भगवान !अनन्तानुबन्धी रूप अशुभ लेश्याओं के भावों से मैं कहाँ- कहाँ घुमा और कितना दुःख पाया 😩 Скачать
122, हे भगवान !अनन्तानुबन्धी रूप कृष्ण लेश्या के भावों से मैं कहाँ- कहाँ घुमा और कितना दुःख पाया 😩 Скачать
121,संज्वलन कषायरूप पीत पद्म व शुक्ल लेश्या धारक ( निर्ग्रन्थ मुनिराजों )के परिणाम व प्रवृति। पृ- 81 Скачать
120,संज्वलन कषायरूप पीत पद्म व शुक्ल लेश्या धारक ( निर्ग्रन्थ मुनिराजों )के परिणाम व प्रवृति। पृ- 81 Скачать
119,प्रत्याख्यान रूप पीत-पद्म व शुक्ल लेश्या धारक (देशविरत सम्यग्दृष्टि) के परिणाम व प्रवृत्ति।पृ-80 Скачать
118,अप्रत्याख्यान रूप पीत, पद्म व शुक्ल लेश्या धारक ( सम्यग्दृष्टि) के परिणाम व प्रवृत्ति । पृ - 79 Скачать
117,अप्रत्याख्यान रूप नील व कापोत लेश्या के धारक ( सम्यग्दृष्टि) जीव के परिणाम व प्रवृत्ति ।पृष्ठ-78 Скачать
116,अप्रत्याख्यान रूप कृष्ण लेश्या के धारक जीवों ( अविरत सम्यग्दृष्टि) के परिणाम व प्रवृत्ति।पृ- 77 Скачать
114,अनन्तानुबन्धी रूप शुक्ल लेश्या के धारक जीवों के परिणाम व प्रवृत्ति । पृष्ठ क्र - 76 भावदीपिका Скачать
112, अनन्तानुबन्धी रूप पद्दम लेश्या धारक जीवों के परिणाम व प्रवृत्ति । पृष्ठ - 75, 75 भावदीपिका Скачать
110, अनन्तानुबन्धी रूप पीत लेश्या के धारक जीव के परिणाम व प्रवृत्ति । पृष्ठ क्र - 73 भावदीपिका Скачать
109,अनन्तानुबन्धी रूप कापोत लेश्या के धारक जीव के परिणाम व प्रवृत्ति । पृष्ठ क्र - 72 भावदीपिका Скачать
106,धर्म और धर्म के साधनों में कृष्ण लेश्यावाले की प्रवृत्तियों का विवेचन । पृष्ठब- 70 भावदीपिका Скачать
105, काले मनवाले की काली करतूतें । (अनंतानुबन्धी रूप कृष्ण लेश्या का स्वरूप । पृष्ठ 69, 70 भावदीपिका Скачать
98, नोकषायों रूप प्रत्याख्यान कषाय के उदय से होंनेवाली देशव्रती श्रावक की प्रवृत्ति । पृष्ठ 64,65 Скачать
97,प्रत्याख्यान माया, लोभ व हास्यादि नोकषायों के उदय से होंनेवाली देशव्रती श्रावक की प्रवृत्ति । Скачать
96, प्रत्याख्यान कषाय के उदय में होंनेवाली देशव्रती श्रावक के परिणाम तथा प्रवृत्ति । पृष्ठ क्र - 63 Скачать
94,अविरत सम्यग्दृष्टि के हास्य,रति,अरति शोक,भय,जुगुप्सा इत्यादि नोकषायों रूप प्रवृति कैसे होती है ? Скачать
91, अप्रत्याख्यान कषाय का स्वरूप । ज्ञानी गृहस्थ की कषाय रूप प्रवृत्ति कैसी होती है ? पृष्ठ 59 , 60 Скачать
90, दुःखस्वरूप इन अनन्तानुबन्धी कषाय भावों के नाश करने का क्या उपाय है ? पृष्ठ - 59 भावदीपिका Скачать
82, अनन्तानुबन्धी क्रोध कषायरूप प्रवृति । "क्रोध बड़ा शैतान है' आखिर ये उत्पन क्यों होता है ? Скачать
81,आप्त,आगम व पदार्थों के सम्बंध से अनन्तानुबन्धी कषायरूप धर्म विरुद्ध कार्य । Part - 7 पृष्ठ -52 Скачать
79, देव-गुरु-धर्म आदि के निकट अविवेकपूर्ण अनन्तानुबन्धी कषायरूप धर्मविरुद्ध कार्य part - 5 pag -51 Скачать
78, देव-शास्त्र-गुरु की पूजा के समय में होनेवाली अनन्तानुबन्धी कषायरूप धर्मविरुद्ध प्रवृत्ति part 4 Скачать
77,देव-शास्त्र-गुरु की पूजा के समय में होनेवाली अनन्तानुबन्धी कषायरूप धर्मविरुद्ध प्रवृत्ति part -3 Скачать
76, आओं ! थोडा झांक ले अपने अंतर में 🧘 अनन्तानुबन्धी कषाय की प्रवृत्ति = part - 2 , पृष्ठ क्र - 49 Скачать
75, आओं ! थोडा झांक ले अपने अंतर में 🧘 अनन्तानुबन्धी कषाय की प्रवृत्ति = part - 1 , पृष्ठ क्र - 49 Скачать
71,जरा सोचों तो 🤔 हम कितने प्रकार की कषायें करते रहते है ।ये असंख्यात लोकप्रमाण कषाय क्या है? पृ -47 Скачать
69, शैल,अस्थि,दारुसम शक्ति के धारकमिथ्यात्व कर्म के उदय से होनेवाली जीव की अवस्था ।पृष्ठ क्र - 44 Скачать
5 ,जैन बेसिक तत्वज्ञान - जैन आचार्यों द्वारा वस्तुगत ' वस्तुव्यवस्था 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य का निरूपण Скачать
67 ,शैल,अस्थि तथा दारू सम शक्ति धारक मिथ्यात्व के स्पर्धक होने पर जीव की क्या अवस्था होती है । Скачать
65 , स्पर्धक का स्वरूप व उनकी शैल,अस्थि,दारू व लतारूप अनुभाग शक्ति । पृष्ठ क्र - 44 भावदीपिका Скачать
64 , मिथ्यात्व कर्म का अनुभाग बंध - अविभाग प्रतिच्छेद, वर्ग ,वर्गणा व स्पर्धक ।पृष्ठ क्र- 43,44 Скачать
60, आप्त,आगम व पदार्थ के आश्रय से होनेवाला संशयरूप मिथ्यात्व भाव । पृष्ठ क्र - 39,40 भावदीपिका Скачать
59,आखिर धर्म का कौनसा स्वरूप सही है ? धर्म के संबंध में होनेवाला संशयरूप मिथ्यात्व भाव।पृष्ठ - 39 Скачать
58, देव ,गुरु और धर्म के आश्रय लेने पर भी क्या संशयरूप मिथ्यात्व रह सकता है ? पृष्ठ - 38 भावदीपिका Скачать
55, निश्चयरूप धर्म व व्यवहाररूप धर्म की सच्ची पहचान व सुमेल से सच्चे धर्मात्मा बनते है। पृष्ठ - 36 Скачать
54 ,आत्मा की खूब चर्चा करता हूँ , पर से भिन्न अपने को जानता हूँ फिर भी मेरे मिथ्यात्वरूप पाप कैसे ? Скачать
53 ,धर्मात्मा बनने के लिए मैंने क्या- क्या नही किया सबकुछ तो किया फिर भी मेरे मिथ्यात्वरूप पाप ? Скачать
51, मैं तो इतना धर्म करता हु करता हु फिर भी मेरे मिथ्यात्वरूप पाप कैसे ? पृष्ठ - 35 भावदीपिका Скачать
50 ,मेरे जीवन में गुरु है , मैं धर्म भी करता हु फिर भी मेरे मिथ्यात्वरूप पाप कैसे ? पृष्ठ क्र - 35 Скачать
49 , मैं तो वीतरागी देव को ही मानता हूं फिर भी मेरे मिथ्यात्वरूप पाप कैसे ? पृष्ठ - 34 भावदीपिका Скачать