ज्यादातर लोगों का मानना है कि वर्णव्यवस्था के चौथे पायदान पर रहे शुद्र या अछूत लोग सिर्फ नाम के शुद्र हैं या अछूत हैं पर उनसे कोई भी छुआछूत या नफरत नही थी बल्कि उन्हें तो तीनो वर्णों की तरह ही समझा जाता था और आज भी यही है ।
मेरा उन सब से सवाल है
क्या सच मे ऐसा था या अब भी है ?
यहां तक शंकराचार्य तक ने कहा है कि हिन्दू धर्म मे शूद्रों,हरिजनों,अछूतों को नफरत की तरह से नही देखा जाता था इसका प्रमाण ये है कि भगवान राम ने शबरी के झूठे बेर खाये थे ।
जिस तरह से शंकराचार्य ने इस तरह का statment दिया था और जो मैंने इनके ही ग्रंथों में पढ़ा है सब उलट है ।
आप भी वीडियो में देखिए इनकी दोगली मानसिकता ।
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