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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 38 - Shree Krishna broke Shiva's bow
श्रीकृष्ण और बलराम उस पूजास्थल पर पहुँचते हैं जहाँ शिव धनुष रखा है। मुख्य पुजारी की अनुमति से वे दोनों शिव धनुष के दर्शन करते हैं और स्पर्श भी। इसके बाद कृष्ण बहुत ही भोलेपन से पुजारी से कहते हैं कि मैं धनुष को तनिक उठाना चाहता हूँ। पुजारी कहता है कि इस संसार में ऐसा कोई नहीं जो अकेले इसे उठाकर प्रत्यन्चा चढ़ा सके। कृष्ण दावा करते हैं कि मैं ऐसा कर सकता हूँ। यह सुनकर वहाँ उपस्थित सेनानायक और सैनिक कृष्ण का उपहास उड़ाते हैं। कृष्ण अपने हाथ जोड़कर और आँख मूँद कर महादेव से इसकी आज्ञा माँगते हैं। कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव मुस्कुराकर स्वीकृति देते हैं। श्रीकृष्ण सहज भाव से धनुष को उठा लेते हैं और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को अचम्भित अवस्था में डालकर धनुष की प्रत्यन्चा थाम लेते हैं। इसके बाद वह धनुष को उसी प्रकार तोड़ देते हैं जैसे उन्होंने त्रेतायुग में राम अवतार के रूप में किया था। धनुष भंग की ध्वनि से पृथ्वी में कम्पायमान हलचल पैदा हो जाती है। महल में बैठे कंस का राजमुकुट सिर से धरती पर गिर पड़ता है। अपने आश्रम में पूजा मे लीन ऋषि गर्ग को इस चमत्कार की अनुभूति होती है। कारागार में देवकी और वसुदेव भी चौंकते हैं। कंस के सैनिक कृष्ण और बलराम को बन्दी बनाने के लिये झपटते हैं किन्तु वे दोनों टूटे धनुष को अस्त्र बनाकर सैनिकों को परास्त कर देते हैं। सेना नायक वहाँ से बच कर भाग निकलता है और कंस को शिव धनुष भंग होने की सूचना देता है। कंस सेनानायक की कायरता पर उसे मृत्युदण्ड देने का ऐलान करता है। मंत्री चाणुर उसे रोकता है और कहता है कि अपने ही सैनिको को यूँ दण्डित करने से सैन्य विद्रोह हो सकता है। ऐसे विद्रोही सैनिक कृष्ण के पक्ष में जा सकते हैं। वैसे भी धनुष टूटने के बाद मथुरावासियों में कृष्ण के प्रति विश्वास बढ़ गया होगा। अगले दिन कंस रंगशाला में मथुरा के सैनिकों के स्थान पर मगध नरेश जरासंध द्वारा भेजे गये सैनिकों को अग्रिम पंक्ति में तैनात करने का आदेश देता है ताकि जनविद्रोह भड़कने पर वे बेहिचक रक्त बहा सकें। राजपुरोहित सत्यक कृष्ण वध को असम्भव बताता है। वह कंस को स्मरण कराते हुए कहता है कि धनुर्यज्ञ के अवसर पर कृष्ण को मारने की योजना मैंने आपको बतायी थी किन्तु गुरु शुक्राचार्य की यह बात भी बतायी थी कि यदि यज्ञ से पहले धनुष टूट गया तो यज्ञ की यजमान की मृत्यु तय है। राजपुरोहित कहता है कि कृष्ण द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने से यह बात प्रमाणित हो जाती है कि वह स्वयं नारायण हैं और नारायण को पराजित करने की शक्ति तीनों लोकों में किसी के पास नहीं है। वह कंस को परामर्श देता है कि आपको अपने प्राण बचाने के लिये कृष्ण की शरण में चले जाना चाहिये। नारायण बड़े दयालु हैं। आपको क्षमा कर देंगे। कंस राजपुरोहित को ठोकर मार कर अपमानित करता है और कहता है कि मैं देवराज इन्द्र को परास्त कर अमरावती में अपना ध्वज लगा चुका हूँ इसलिये मेरी शक्ति कृष्ण से अधिक है। मथुरा में दूध बेचने के बाद ग्वाले गोकुल लौट कर सारा हाल नन्दराय और यशोदा को कह सुनाते हैं और महाराज कंस की योजना का भी खुलासा करते हैं। यशोदा भयभीत होकर रोने लगती हैं। इसके बाद रात में ही नन्द के नेतृत्व में गोकुलवासी कृष्ण की रक्षा के लिये हाथों में मशाल लेकर मथुरा की ओर कूच करते हैं। कारागार के प्रहरी भी अब कृष्ण के पक्ष में हैं। वह देवकी और वसुदेव को कृष्ण द्वारा धनुष भंग की सूचना देते हैं और अपने कृत्यों की क्षमा माँगते हैं। उध कंस की योजना के अनुरूप कुवलियापीठ हाथी को रात भर मदिरापान कराया जाता है। मल्लयु़द्ध के लिये पहलवान भी रात भर कसरत करते हैं। उसी रात ब्रह्मापुत्र ऋषि गर्ग अपने प्रभु के दर्शन पाने के लिये श्रीकृष्ण के स्वप्न में आते हैं। वह भगवान के चरण गंगाजल से धोते हैं। उस रात कंस को पुनः डरावने स्वप्न आते हैं। उसे दिखायी पड़ता है कि वह गधे पर सवार है और कालदूत उसे घेरकर आक्रमण कर रहे हैं। कंस डर कर उठ बैठता है।
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