भारत में जल संकट (Water Crisis) पानी के प्रबंधन और उपयोग में बदलाव की ज़रूरत हैं । *Hindi Documentary
इस वर्ष भारत में मानसून आने में कुछ समय की देरी हुई। इस देरी ने भारत के कई हिस्सों में पानी के संकट को जन्म दे दिया। इसमें प्रमुख रूप से महाराष्ट्र एवं चेन्नई की स्थिति अधिक भयावह थी। यह स्थिति भारत में धीरे धीरे जन्म ले रहे जल संकट की ओर इशारा कर रही है। अभी तक देश की सरकारें जल संरक्षण तथा उसके दुरुपयोग को रोकने के लिये कोई गंभीर प्रयास नहीं कर सकी हैं। ऐसा माना जा रहा है कि स्थिति में यदि सुधार नहीं किया जाता तो आने वाले कुछ वर्षों में भारत को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है, दक्षिण अफ्रीका के एक शहर में कुछ समय पूर्व ही जल आपात की घोषणा की गई थी। ऐसी ही स्थिति चेन्नई के संदर्भ में भी देखी जा रही थी। उपर्युक्त संदर्भ में भारत के लिये जल संरक्षण एक अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न बनकर उभरा है, जिसे समय रहते हल करने की आवश्यकता है।
इस परिदृश्य में यह आश्चर्यजनक नहीं रहा कि अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ‘मन की बात’ संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री ने इस विषय पर केंद्रित होते हुए एक-एक बूँद जल बचाने और जल संरक्षण को स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर ही एक व्यापक जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया। इससे पूर्व ‘नल से जल’ कार्यक्रम के माध्यम से देश के प्रत्येक घर तक वर्ष 2024 तक नल से जल आपूर्ति की प्रतिबद्धता वे पहले ही जता चुके हैं। ये सरकार के सराहनीय प्रयास हैं और अपेक्षा की जाती है कि समय के साथ इसके गुणवत्तापूर्ण परिणाम सामने आएंगे।
किंतु इस संदर्भ में यह विचार करना भी प्रासंगिक होगा कि हम इस वर्तमान संकट तक पहुँचे कैसे और देश में धारणीय जल-उपयोग के लिये हम किस सर्वोत्तम तरीके व तीव्रता से इस संकट से बाहर आ सकते हैं।
भारत में जल की स्थिति
भारत में जल उपलब्धता व उपयोग के कुछ तथ्यों पर विचार करें तो भारत में वैश्विक ताज़े जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत मौजूद है जिससे वैश्विक जनसंख्या के 18 प्रतिशत (भारतीय आबादी) हिस्से को जल उपलब्ध कराना होता है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, वर्ष 2010 में देश में मौजूद कुल ताज़े जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिये किया जा रहा था जो वर्ष 2050 तक भी लगभग 68 प्रतिशत के स्तर पर बना रहेगा। वर्ष 2010 में घरेलू उपयोग में इनकी मात्रा 6 प्रतिशत थी जो वर्ष 2050 तक बढ़कर 9.5 प्रतिशत हो जाएगी।
भूमिगत जल दोहन
भूमिगत जल के प्रबंधन का कोई प्रभावी विनियमन मौजूद नहीं है। सिंचाई के लिये सस्ती अथवा निःशुल्क विद्युत आपूर्ति की नीति ने भूजल के उपयोग के संबंध में एक अव्यवस्था को जन्म दिया है। इस नीति से एक ओर कृषि को प्रदत्त बिजली सब्सिडी के कारण भारतीय राजकोष को प्रतिवर्ष 70,000 करोड़ रूपए का बोझ उठाना पड़ता है तो दूसरी ओर भूजल स्तर में संकटपूर्ण कमी आ रही है। समग्र स्थिति यह है कि 256 ज़िलों के 1,592 प्रखंड भूजल के संकटपूर्ण अथवा अति-अवशोषित स्थिति में पहुँच गए हैं। पंजाब जैसे क्षेत्रों में भौम जल स्तर में प्रतिवर्ष 1 मीटर तक की कमी आ रही है और यह प्रक्रिया लगभग दो दशकों से जारी है।
ज्ञात है कि भारत में लोगों के अनुपात में पहले ही जल कम मात्रा में उपलब्ध है। भारत की अवैज्ञानिक कृषि नीति तथा भूमिगत जल के तीव्र दोहन ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया है। भारत की नव-निर्वाचित सरकार ने भविष्य में उत्पन्न होने वाले जल संकट से निपटने के लिये कुछ प्रयास किये हैं। किंतु स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ये प्रयास नाकाफी सिद्ध हो सकते हैं। भारत को जल संकट से निपटने के लिये इसे एक आंदोलन का रूप देना होगा। स्वच्छ भारत मिशन की सफलता से प्रेरित होकर जल के क्षेत्र में भी ऐसे ही प्रयास करने होंगे। मज़बूत इच्छाशक्ति एवं कारगर नीति के बल पर भारत को आने वाले सबसे बड़े संकट से उभारा जा सकता है। इन प्रयासों को अंजाम देते समय भारत को कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि सर्वाधिक जल का उपयोग कृषि क्षेत्र में ही हो रहा है जिसको कम करने की प्रबल संभावनाएँ भी मौजूद हैं। इसके लिये भारत शुष्क कृषि तकनीक तथा इज़राइल का सहयोग भी ले सकता है। सरकार एवं जन भागीदारी द्वारा व्यापक प्रयासों के चलते ही भारत जल संकट की स्थिति से निपट सकता है।
प्रश्न: ग्रीष्म ऋतू में भारत के कई हिस्सों में प्रायः जल की कमी देखने को मिलती है, इसका मुख्य कारण भारत में अवैज्ञानिक कृषि को समझा जाता है। आपके विचार में किन उपायों द्वारा भारत में जल की कमी से निपटा जा सकता है?
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