अहसान फरामोश, आखिर क्यों न कहा जाए। मुस्लिम बस्तियों में अगर उन्हें बचाने के लिए स्वास्थ्यकर्मी, सुरक्षाकर्मी और सफाईकर्मी अपनी जान जोखिम में डाल कर जा रहे हैं तो उनको सलाम करने की बजाय उन पर पत्थर बरसाएं जाएं और उनकी जान लेने की कोशिश की जाय। क्या ये अहसान फरामोशी नहीं है। क्या इसके लिए इन्हें माफ किया जा सकता है। याद रखिए आज के इस गुनाह का इंसाफ भले ही सरकार इन्हें सलाखों के पीछे डाल कर, कर दे लेकिन इंसानियत कभी इन्हें माफ नहीं करेगी।
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