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श्री हनुमानाष्टक आदित्य गढ़वी के भावयुक्त स्वर में। संकटमोचन हनुमानाष्टक की संरचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. माना जाता है कि संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति अपनी हर बाधा और पीड़ा से मुक्त हो जाता है और उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - [ Ссылка ]
Watch the story of "Shree raam jee ne kiya ashvamedh yagyn" now!
श्री राम के जन्म दिन पर हवन पूजन किया जाता है और गुरु वसिष्ठ उन्हें बधाई देते हैं। आर्य सुमन्त श्री राम को जन्मदिन की बधाई देते हैं। आर्य सुमन्त श्री राम को प्रजा का उत्साह बनाए रखने के लिए कहते हैं। राजसु यज्ञ करने की बात श्री राम सबके सामने रखते हैं जिस पर भरत श्री राम इस यज्ञ को करने से मना करते हैं। इस पर लक्ष्मण श्री राम को अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिए कहते हैं और इस बात को श्री राम मान लेते हैं। श्री राम के प्रार्थना से ऋषि वसिष्ठ अश्वमेध यज्ञ करने का दायित्व ले लेते हैं। महर्षि वाल्मीकि लव कुश की स्पर्श मात्र से कुंडलिनी जागृत कर देते हैं ताकि उन्हें ज्ञान सीधी अर्जित करने में वर्षों का समय ना लगे। श्री राम अश्वमेध यज्ञ की तैयारी शुरू करते हैं और सभी को निमंत्रण भेजने को कहते हैं। प्रजा में उठी श्री राम के दोबारा विवाह करने की बात। महर्षि वाल्मीकि को प्रजा में हो रही बातों को सुनकर दुःख होता है। गौतमी माँ वन देवी को अश्वमेध यज्ञ की बात बताती है और उनके विवाह की भी बताती हैं क्योंकि बिना पत्नी के अश्वमेध यज्ञ नहीं किया जा सकता, जिसे सुनकर वन देवी (माता सीता) को दुःख होता है। श्री राम को जब अपने विवाह की उठी खबर का पता चलता है तो उन्हें क्रोध होता हैं। श्री राम सभी को दूसरे विवाह करने से मना कर देते हैं। जब श्री राम ने दूसरे विवाह से मना कर दिया तो ऋषि वसिष्ठ ने माता सीता की स्वर्ण मूर्ति बनवाने का रास्ता बताया। प्रजा को श्रीराम के इस निर्णय से बहुत ख़ुशी हुई और प्रजा द्वारा माता सीता के प्रति बोले गये शब्दों का प्रजा को दुःख होता है। माता सीता को श्रीराम द्वारा दूसरे विवाह से मना कर देने पर ख़ुश होती है। महाराजा श्रीराम के दरबार में उनके निमंत्रण पर उनके सभी अतिथि व सगे सम्बन्धी आना शुरू कर देते हैं। शत्रुघन अपनी पत्नी और दोनो बालकों सहित राज दरबार में आते हैं, शत्रुघन के पत्नी और पुत्र कौशल्या माता से मिलने आते हैं जहाँ माता सुमित्रा कैकयी भी आ जाती हैं सारा परिवार एक साथ मिलकर ख़ुश होते हैं। श्री राम शत्रुघन के पुत्रों से मिलते हैं। राज माता कौशल्या को माता सीता को याद करके दुखी होती है। ऋषि वाल्मीकि लव कुश को अस्त्र शास्त्र देते हैं और उनका उपयोग करने के नियम भी बताते हैं और प्रतिज्ञा लेने को कहते हैं। लव कुश माता सीता से आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें बताते हैं की ऋषि वाल्मीकि ने उन्हें अस्त्र शस्त्र दिए हैं। कुश माता सीता से अपने पिता के बारे में पूछते हैं परंतु माता सीता उन्हें वक्त आने पर उनके पिताजी के बारे में सब कुछ बता देंगे। माता सीता अपने अनुष्ठान के लिए कमल पुष्प लाने के लिए कुश को कहती हैं और कुश वचन देता है की वह पुष्प ज़रूर लाएगा। श्री राम माता सीता की स्वर्ण मूर्ति की देखते हैं। श्री राम शिल्पकार को मूर्ति बनाने पर धन्यवाद करते हैं पुरस्कार देते हैं। अश्वमेध यज्ञ की तैयारी शुरू कर दी जाती है, ऋषि वसिष्ठ लक्ष्मण को सभी आमंत्रित अतिथियों के लिए सब तरह की सुविधाएँ तैयार करने को आदेश देते हैं। महर्षि वाल्मीकि माता सीता के साथ अनुष्ठान करने के लिए जाने से पहले लव कुश को आश्रम की सुरक्षा का दायित्व देते हैं। श्रीराम नदी से यज्ञ के लिए जल लेने के लिए जाते हैं। अश्वमेध यज्ञ शुरू हो जाता है। श्री राम माता सीता की स्वर्ण मूर्ति के बैठकर यज्ञ शुरू कर देते हैं। अश्वमेध यज्ञ के अश्व पूजा अर्चना करके चरो दिशाओं में घूमने के लिए भेज दिया जाता है और शत्रुघन को अश्व की सुरक्षा के लिए साथ भेज देते हैं। शत्रुघन अश्व के साथ सभी दिशाओं में घूमने और श्रीराम के नाम का परचम लहराने के लिए निकल पड़ते हैं। रस्ते में जो भी राज्य का राजा मिलता है वह उनके सामने मस्तक झुका कर समर्पण कर देता है। राजा श्रीराम का दूत उन्हें बताता है की सभी दिशाओं में घूमने के बाद अश्वमेध का अश्व वापस अपने राज्य की सीमा में लौट आते हैं। लव अश्वमेध के अश्व को देख कर मोहित हो जाते हैं और उसे पकड़ लेते हैं। सेना अश्व को लेने के लिए लव कुश के पीछे भागते हैं और जब वो लव से अश्व को आज़ाद करने की बात करते हैं तो लव मना कर देता है और उन्हें कहता है की श्री राम को बात दो की मैं युद्ध की चुनौती स्वीकार करता हूँ।
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रामायण कथा | श्री राम जी ने किया अश्वमेध यज्ञ
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