|| GANESH MANTRA - ॐ गणानां त्वा गणपतिं ||
|| "वैदिक नाद" आचार्यो द्वारा गणेश मंत्र पाठ "||
|| VEDIC NAAD SANSKRIT BAND OF INDIA ||
भगवान श्री गणेश अपने हर रूप में प्रसन्नता और खुशियों का वरदान देते हैं। उनकी हर आराधना फलदायक होती है। वह सौभाग्य और मंगल के प्रदाता हैं।
*ॐआप सभी के आग्रह को स्वीकार करते हुए ॐ वैदिक नाद समूहॐ के आचार्य गण आपको सप्रेम*
ॐ गणानां त्वा गणपति(गुँ) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गुँ)
हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति(गुँ) हवामहे व्वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ।।१।। गायत्री त्रिष्टुब् जगत्य नुष्टुप् पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा ककूप् सूचिभि: शम्यन् तुत्वा।।२।। द्विपदा याश्चतुष्पदास्त्रिपदा याश्चषट्पदा:। विच्छन्दा याश्च सच्छन्दा: सूचिभि: शम्यन् तुत्वा।।३।। सहस्तोमाः सहच्छन्दस आवृतः सह प्रमा ऋषयः सप्त दैव्या:। पूर्वेषां पन्था मनुदृश्य धीरा अन्वालेभिरे रथ्यो न रश्मिन् ।।४।। यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति। दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥५॥
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥६॥
यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥७॥
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥८॥
यस्मिन्नृचः साम यजूं गुँ षि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः। यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥९॥
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव। हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥१०॥
॥ ॐ ॥ हिंदी अनुवाद ॥ ॐ ॥
श्रीगणेश जी के लिए नमस्कार है. समस्त गणों का पालन करने के कारण गणपतिरूप में प्रतिष्ठित आप को हम आवाहित करते हैं, प्रियजनों का कल्याण करने के कारण प्रियपतिरुप में प्रतिष्ठित आपको हम आवाहित करते हैं और पद्म आदि निधियों का स्वामी होने के कारण निधिपतिरूप में प्रतिष्ठित आपको हम आवाहित करते हैं. हे हमारे परम धनरूप ईश्वर ! आप मेरी रक्षा करें. मैं गर्भ से उत्पन्न हुआ जीव हूँ और आप गर्भादिरहित स्वाधीनता से प्रकट हुए परमेश्वर हैं. आपने ही हमें माता के गर्भ से उत्पन्न किया है.
हे परमेश्वर ! गान करने वाले का रक्षक गायत्री छन्द, तीनों तापों का रोधक त्रिष्टुप छन्द, जगत् में विस्तीर्ण जगती छन्द, संसार का कष्ट निवारक अनुष्टुप छन्द, पंक्ति छन्द सहित बृहती छन्द, प्रभातप्रियकारी ऊष्णिक् छन्द के साथ ककुप् छन्द – ये सभी छन्द सुन्दर उक्तियों के द्वारा आपको शान्त करें.
हे ईश्वर ! दो पाद वाले, चार पाद वाले, तीन पाद वाले, छ: पाद वाले, छन्दों के लक्षणों से रहित अथवा छन्दों के लक्षणों से युक्त वे सभी छन्द सुन्दर उक्तियों के द्वारा आपको शान्त करें. प्रजापति संबंधी मरीचि आदि सात बुद्धिमान ऋषियों ने स्तोम आदि साम मन्त्रों, गायत्री आदि छन्दों, उत्तम कर्मों तथा श्रुति प्रमाणों के साथ अंगिरा आदि अपने पूर्वजों के द्वारा अनुष्ठित मार्ग का अनुसरण करके सृष्टि यज्ञ को उसी प्रकार क्रम से संपन्न किया था जैसे रथी लगाम की सहायता से अश्व को अपने अभीष्ट स्थान की ओर ले जाता है.
जो मन जगते हुए मनुष्य से बहुत दूर तक चला जाता है, वही द्युतिमान मन सुषुप्ति अवस्था में सोते हुए मनुष्य के समीप आकर लीन हो जाता है तथा जो दूर तक जाने वाला और जो प्रकाशमान श्रोत आदि इन्द्रियों को ज्योति देने वाला है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्पवाला हो. कर्मानुष्ठान में तत्पर बुद्धि संपन्न मेधावी पुरुष यज्ञ में जिस मन से शुभ कर्मों को करते हैं, प्रजाओं के शरीर में और यज्ञीय पदार्थों के ज्ञान में जो मन अद्भुत पूज्य भाव से स्थित है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो.
जो मन प्रकर्ष ज्ञानस्वरुप, चित्तस्वरुप और धैर्यरूप है, जो अविनाशी मन प्राणियों के भीतर ज्योति रूप से विद्यमान है और जिसकी सहायता के बिना कोई कर्म नहीं किया जा सकता, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो. जिस शाश्वत मन के द्वारा भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल की सारी वस्तुएँ सब ओर से ज्ञात होती हैं और जिस मन के द्वारा सात होता वाला यज्ञ विस्तारित किया जाता है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो.
जिस मन में ऋग्वेद की ऋचाएँ और जिसमें सामवेद तथा यजुर्वेद के मन्त्र उसी प्रकार प्रतिष्ठित हैं, जैसे रथचक्र की नाभि में अरे (तीलियाँ) जुड़े रहते हैं, जिस मन में प्रजाओं का सारा ज्ञान ओतप्रोत रहता है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो. जो मन मनुष्यों को अपनी इच्छा के अनुसार उसी प्रकार घुमाता रहता है, जैसे कोई अच्छा सारथी लगाम के सहारे वेगवान घोड़ों को अपनी इच्छा के अनुसार नियन्त्रित करता है, बाल्य, यौवन, वार्धक्य आदि से रहित तथा अतिवेगवान जो मन हृदय में स्थित है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।।
![](https://i.ytimg.com/vi/VRvnl9m5vU0/maxresdefault.jpg)