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त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस-
मादित्य-वर्णममलं तमसः पुरस्तात्
त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयंति मृत्युं
नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र! पन्थाः ॥२३॥
अन्वयार्थ : हे मुनीन्द्र ! तपस्वीजन आपको सूर्य की तरह तेजस्वी, निर्मल और मोहान्धकार से परे रहने वाले परम-पुरुष मानते हैं । वे आपको ही अच्छी तरह से प्राप्त कर मृत्यु को जीतते हैं । इसके सिवाय मोक्षपद का दूसरा अच्छा रास्ता नहीं है ।
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