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स्वर - श्री विजेंद्र चौहान
एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी की बाहुओं में वात व्याधि की गहरी पीड़ा उत्पन्न हुई । फोड़े-फुंसियों के कारण सारा शरीर वेदना का स्थान बन गया । हर प्रकार की औषधि की गई, यंत्र, मंत्र तथा टोटके आदि के भी उपाय किए गए लेकिन रोग कम नहीं हुआ उलटे और बढ़ने लगा। दिनोंदिन बढ़ते इस असहनीय कष्ट से हताश होने पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने अंत में रोगमुक्ति के लिए हनुमान जी की वंदना आरंभ कर दी और हनुमान जी की कृपा से उनका सारा कष्ट पूरी तरह से नष्ट हो गया ।
यहाँ हम 44 पद्यों का “हनुमानबाहुक” नामक प्रसिद्ध स्तोत्र का हिंदी गान प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि हमारे श्रोतागण इसका लाभ उठा सकें । असंख्य हरिभक्त, श्रीहनुमान जी के उपासक निरन्तर इसका पाठ करते हैं और अपने मनोवांछित मनोरथ को पाते हैं । संकट के समय इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करना रामभक्तों के लिए परम आनन्द देने वाला सिद्ध हुआ है।
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