स्कंद पुराण के कल्याण खंड में लिखा है कि एक समय गौतम ऋषि ने हिमालय के समीप भृगुतुंग क्षेत्र में शिवजी की आराधना की । शिवजी ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो गौतम ऋषि बोले , ऐसा स्थान बताइये जहाँ निर्भय होकर तपस्या करूँ । तब शिव जी ने कहा सौगन्धिक पर्वत के उत्तर अर्बुदारण्य से वायव्य कोण की ओर जाओ , वहां त्र्यंबक सरोवर के समीप आश्रम बनाओ , वह विश्वप्रसिद्ध तीर्थ होगा । तब गौतम जी ने वहां जाकर कठिन तपस्या की । तब ब्रह्मादिक सब देवताओं ने आकर वर दिया कि आज से यह गौतम आश्रम नाम से विख्यात होगा और सब देवता यहां निवास करेंगे यह कहकर देवता चले गए । आश्रम का नाम श्रीमाल क्षेत्र हुआ । इस नाम का कारण यह है कि भृगु ऋषि की अद्वैतरूपिणी श्री नाम की एक कन्या थी । नारद जी ने विष्णु भगवान के निमित्त वह कन्या देने को कहा । भृगु ऋषि सम्मत हुए तब भगवान विष्णु ने नारद के वचन से माघ शुक्ल एकादशी को उसका पानीग्रहण किया । तब नारद जी बोले , भगवन् ! अब इस वधू को त्र्यम्बक सरोवर में स्नान कराया जाए तब यह अपने स्वरूप को पहचानेगी । स्नान करते ही वह कन्या लक्ष्मी स्वरुप को प्राप्त हो गई । सब देवता विमानों में बैठ स्तुति करने लगे । तब लक्ष्मी ने देवताओं से कहा जैसा यहां का आकाश विमानों सुशोभित है , वैसी यहां की पृथ्वी घरों से शोभित हो जाए । अनेक गोत्र के ऋषि मुनि यहां आवें । मैं उनको यह भूमि दान करुंगी , अपने अंश से मैं यहां निवास करूंगी । देवताओं ने तथास्तु कहा । विश्वकर्मा ने वहां सुंदर नगर बनाया , तब ब्रह्मा जी बोले - श्री के उद्देश्य से देवताओं की विभाग माला से यह पृथ्वी व्याप्त हुई है । इस कारण श्रीमाल नाम से यह नगर विख्यात होगा । तब भगवान् विष्णु के दूत अनेक ऋषि - मुनियों को बुला कर लाए । कौशिकी , गंगा तटवासी गयाशीर्ष , कालिंजर , महेन्द्राचल , मलयाचल , गोदावरी , प्रभास , उज्जयंत , गोमती , नंदिवर्द्धन , सौगन्धिक पर्वत , पुष्कर , प्रयाग , कुरुक्षेत्र , हेमकूटआदि अनेक तीर्थों से 45 हजार ब्राह्मण आये । उनको बड़े सत्कार के साथ घरों में सब सामग्री रखकर लक्षदान करने लगी , और सबसे पहले गौतम की पूजा की इच्छा की । इसका सिंध देशवासी ब्राह्मणों ने विरोध किया , तब आंगिरस ब्राह्मणों ने कहा तुम महातपस्वी गौतम का विरोध करते हो इस कारण तुमसे वेद पृथक हो जाएगा । वह यह सुन कर चले गए वे सिंधुपुष्करणा ब्राह्मण कहलाते है। जब लक्ष्मी ने कहा पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी और साथ में चार लाख गायें दी । वरुण देवता ने उस समय देवी लक्ष्मी को 1008 स्वर्ण के कमलों की माला पहनाई । माला के पत्रों में स्त्री - पुरुषों के प्रतिबिंब दिखने लगे । और वह प्रतिबिंब के स्त्री - पुरुष भगवती की इच्छा से कमलों से बाहर प्रकट हो गए । उन्होंने लक्ष्मी से पूछा कि हमारा नाम और कर्म क्या है ? भगवती बोली , हे प्रतिबिम्बोत्पन्न ब्राह्मणों ! तुम नित्य सामगान किया करो , और श्रीमाल क्षेत्र में कलाद नाम वाले ( जिनको त्रागड सोनी कहते हैं ) होंगे ; और ब्राम्हणों की स्त्रियों के आभूषण बनाना तुम्हारा काम होगा । इस प्रकार यह प्रतिबिंब से उत्पन्न ने 8064 कलाद त्रागड ब्राह्मण हुए । उनमें से वैश्यधर्मी , बसोनी हुए , यह पठानी सूरती अहमदाबादी खम्बाती ऐसे अनेक भेद वाले हुए । यह जिन ब्राह्मणों के पास रहे उन्हीं के नाम से कलाद त्रागड ब्राह्मणों का गोत्र चला इस प्रकार यह त्रागड ब्राह्मण भी अध्ययन करते और भूषण बनाते । फिर ब्राह्मणों के धन आदि की रक्षा के लिए विष्णु ने अपनी जंघा से गूलर , दण्डधारी दो वैश्य उत्पन्न किए और उनको ब्राह्मणों की सेवा में लगाया । गोपालन व्यापार उनका कार्य हुआ और 90 हजार वैश्यों ने वहां निवास किया और उनके स्वामी ब्राह्मणों के गोत्र से उन वैश्यों के गोत्र हुए । उस नगर के पूर्ववासी प्राग्वाट पोरवाल कहलाये , दक्षिण के पटोलिया , पश्चिम के श्रीमाली और उत्तर के उर्वला कहलाए । इन ब्राह्मणों के गोत्र हैं कौशिक, शांडिल्य, मौद्गल्य, लौड़वान, हरितस, ऑप्मन्यव, गौतम, कपिंजल, भारद्वाज, वत्सस, चंद्राश, काश्यप, पाराशर ओर सनकस हैं।
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