"Maharaj Yah Karn Nahi, Yah Raudra Roop Hai Shankar Ka " by Vivek Kautilya
यह शौर्यमयी परिदृश्यों की एक भौगोलिक संरचना है,
क्षण सम्मोहन, कर्ण पराक्रम युद्ध क्षेत्र की रचना है
जिसके पौरूष प्रबल पराक्रम पर पांडव घबराते है
मन्त्र मुग्ध संजय जिसका गुणगान सुनाये जाते है
क्या वर्ण कहूँ, क्या धार कहूँ इसके निषंग के हर शर का
महाराज यह कर्ण नही, यह रौद्र रूप है शंकर का।
Sanjay is explaining the anger of #Karn in #Mahabharat to Dhritrastra
#hindipoetry
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