हरियाणवी किस्सा-हीर-रांझा-1
गायक-कर्मपाल शर्मा और साथी
रचनाकार-मांगेराम/लखमीचन्द
प्रस्तुति-सोनोटोन कैसेटस
प्रस्तुति वर्ष-1988
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1. इब तक सूता ना उठ्या लिए सौ-सौ रूक्के मार,
पाली फाटक खोल दिए तेरी हीर खड़ी सै बाहर।।
2. सूना खरक पड़ा रह ज्यागा जब तड़कै ज्यागा पाली,
न्यामड़ नहीं चराई ज्यांगी ये तेरी भूरी काली।।
3. मत ना फिकर करै पाली मैं अर्धशरीरी तेरी,
पहले आले ठाठ बणा द्यूं तीन रोज की देरी।।
4. हीरे मनै न्यू कहै ग्यी थी कदे पाली रो-रो मरज्या,
डाट लिए दया करके नै कदे अपणे घरां डिगरज्या।।
भाग-1
5. हीरे मनै न्यू कहै ग्यी थी कदे पाली रो-रो मरज्या,
डाट लिए दया करके नै कदे अपणे घरां डिगरज्या।।
भाग-2
6. हुई बड़े रै गजब की बात करग्या शियार सामना शेर का।।
7. थी तडके की इन्तजारी तू आई ढील मैं बहू,
तेरे जोबन की खशबोई सै कई मील मैं बहू।।
8. देख लई तू हीरे पातर सोलहा राशि सै,
दोनूं भोजन खा ले भाभी तू निरणां बासी सै।
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