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किन्नर कैलाश का रहस्य | Mystery of #KinnerKailash | Kinner #Kailash Story | #Santvani
किन्नर कैलाश को लेकर मान्याता है कि महाभारत काल में इस कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, यही पर भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था, और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी।
यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने वनवास काल का अन्तिम समय यहीं पर बिताया था। किन्नर कैलाश को वाणासुर का कैलाश भी कहा जाता है।बर्फिले पहाड़ों की चोटियों पर स्थित यहां का प्राकृतिक शिवलिंग 79 फिट ऊंचा है। किन्नर कैलाश का शिवलिंग त्रिशूल जैसा नजर आता है। यह एक बड़ी सी चट्टान है उसी तरह की जिस तरह की शनि शिंगणापुर में शनि देव की मूर्ति है
इस पर्वत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां का जो शिवलिंग है वो दिन में कई बार रंग बदलता है।
सूर्योदय से पूर्व सफेद, सूर्योदय होने पर पीला, मध्याह्न काल में यह लाल हो जाता है। इसके बाद फिर पीला, सफेद होते हुए संध्या काल में काला हो जाता है। इसके बदलते रंग का रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया है।
कुछ लोगों का मत यही पर है कि, यह एक स्फटिकीय रचना है और सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पड़ने के साथ ही यह चट्टान रंग बदलती नजर आती है,किन्नर कैलाश पर प्राकृतिक रूप से उगने वाले ब्रह्म कमल के हजारों पुष्प देखे जा सकते हैं।जिनका विवरण महाभारत काल में भी मिलता है,और यह पुष्प देवताओं को बेहद पंसद होते थे ।पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव और पार्वती से bhi जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती का मिलन इसी div स्थान पर हुआ है।
किन्नर कैलाश पार्वती कुंड के काफी नजदीक है। मान्यता अनुसार इस कुंड को देवी पार्वती ने खुदवाया था।
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