This is the most requested video Karn Arjun Gatha. Now here is the reason why I praise Arjun the most....
Jai Shree Krishna ❤️❤️❤️
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Lyrics:
इतिहास जिस पर धूल पड़ी है
उसको जरा हटाता हूं,
जिन महा योद्धाओं को नमन है करती दुनिया
उन कर्ण-अर्जुन से मिलवाता हूं।
एक तरफ इंद्र पुत्र पार्थ था
जिस पर गर्व करता पूरा कुरुवंश था,
वही कर्ण मस्तक पर तेज लिए
सूरज का अंश था।
विडंबना थी बहुत भारी
नियति ने खेल ऐसा कुछ रचाया था,
एक मां की दो संतानों को
न जाने शत्रु क्यों बनाया था।
द्रोण के दो शिष्य बनने वाले
आर्यव्रत की शान थे,
दोनों ही बड़े वीर थे
दोनों ही शक्तिमान थे।
अब किसे पता था आगे चलकर
ऐसा कुछ इतिहास बनेगा,
एक भाई दुर्योधन की आस बनेगा
दूजा माधव का विश्वास बनेगा।
पर नियति के चक्र में फस जाएंगे दोनों
क्योंकि एक धर्म रक्षक
और दूजा अधर्मी के श्वास बनेगा।
विकट बड़ा प्रश्न उठा
ब्रह्मास्त्र मिला अर्जुन को द्रोण से,
सभी जानते थे पार्थ ही इसका पात्र है
और खड़े रहे मौन से।
पर श्रेष्ठ बनने की होड़ थी
तो कर्ण ने ये ना सहा,
मुझे भी ब्रह्मास्त्र दो
ये गुरु द्रोण से कहा।
अरे ब्रह्मास्त्र सा विध्वंसक अस्त्र
नहीं मिलता बंदरबांट में,
मन स्थिर और शांत चाहिए
नहीं प्राप्त कर सकते लाग डांट में।
अरे बाकी सब भी थे वीर वहां
ब्रह्मास्त्र का उन्हें ना ज्ञान मिला,
केवल कर्ण ने गुरुकुल त्याग दिया
अज्ञानता का प्रमाण मिला।
ब्राह्मण का वेश धर
छल किया परशुराम से,
बड़े-बड़े वीर डरते थे
जिनके नाम से।
ब्राह्मण था वही जिसे
वेदों का ज्ञान था,
सिर्फ यही जानकर भगवन ने दिया
ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था।
धरती अंबर पाताल
उस दिन थे कांप गए,
जब कर्ण के गुरु द्रोह को
भगवन थे भांप गए।
पर्वत सभी धरा के
और समंदर भी डोले थे,
जब परशुराम कर्ण पर
क्रुद्ध हो बोले थे।
तुमसा क्षत्रिय ना कोई हो पाएगा,
पर झूठ के साथ कभी ब्रह्मास्त्र ना रह पाएगा।
अरे जब मृत्यु होगी निकट तुम्हारा
विवेक मर जाएगा,
अधर्मियों के काम कभी ब्रह्मास्त्र नहीं आएगा।
और वही दूजी और पार्थ था
जिसने धर्म का साथ चुना,
द्रोण, भीष्म, इंद्र, कृपा
सभी गुरुओं से ज्ञान सुना।
अरे पार्थ से मिली यह सीख
सीखने की ललक जो जगाएगा,
उत्तम बनने की चाह से
एक दिन सर्वश्रेष्ठ वो हो जाएगा।
अब परशुराम से ज्ञान लेकर
कर्ण महा योद्धा बन कर आया था,
और ऐसा अद्भुत वह वीर था
जिसने जरासंध को एक दिन में हराया था।
अब दुर्योधन का ऋण उसने
भानुमति स्वयंवर में चुकाया था,
जब दुर्योधन के प्राणों को उसने
अपने शौर्य से बचाया था।
अब जब प्राण बचा लिए थे तो फिर
कैसा ऋण शेष था,
दुर्योधन समक्ष कर्ण क्यों
अधर्म करने को पेश था।
कलयुग में भी अधर्म का
बीज जो बो जाएगा,
एक धर्म करेगा तो
आगे भी करता जाएगा।
अरे फिर से धर्म युद्ध होगा
शीश उसका गिर जाएगा,
अधर्म के साथ जो भी होगा
उसका सामर्थ्य मिट जाएगा।
धर्म की पताका लेकर
श्वेत वाहन कोई आएगा,
फिर से माधव साथ होंगे
और सब्यसांची अधर्म का काल बन जाएगा।
अब दोनों वीरों की गाथा को
आगे मैं बढ़ाता हूं,
युद्ध के वृतांत को
संक्षेप में बताता हूं।
सामने कर्ण था
परवत सा वह विशाल था,
अनंत बल भुजाओं में
विरोधियों का काल था।
कर्ण के समक्ष
उसका अनुज पार्थ था
भूत का कोई छल नहीं
आज का यथार्थ था।
जिसका धर्ममयी भाल था
कह लाता महाबाहु
और स्वर्णमयी चरित्र उसकी ढाल था।
वीर आहुति देने चल पड़े
धर्म युद्ध का वो यज्ञ था,
कर्ण जानता था अनुज को अपने
पर अर्जुन अनभिज्ञ था।
सभी देव थे चकित वहां
युद्ध ऐसा विकराल था,
कर्ण लड़ रहा था वीरभद्र सा
मानो पार्थ महाकाल था।
कर्ण के रथ पर अधर्म का
बोझ था इतना बढ़ा,
चक्र धरा में था जा फंसा
और वो धरा पर ही था खड़ा।
कर्ण ने पार्थ से कहा
धर्म का ना त्याग करो,
मेरा चक्र भूमि से ऊपर आए
फिर मुझ पर वार करो।
धरती गगन पाताल
एक बार फिर डोल पड़े,
जब वासुदेव कर्ण पर
क्रुद्ध हो बोल पड़े।
पार्थ तुम्हें जो धर्म सिखा रहा
खुदा अधर्म का वो पोषी है,
इसमें अधर्म किया था अभिमन्यु से
यही पांचाली का दोषी है।
बात सुन माधव की
अर्जुन करण फिर से टूट पड़े,
दोनों के तीर फिर से
तरकश से छूट पड़े।
पर क्रोध में भर अर्जुन ने
अंजलिका अस्त्र चला दिया,
धर्म के लिए ही जिष्णु ने
अपने ज्येष्ठ का शीश था गिरा दिया।
सीख मिलती इसी बात से
कर्ण सा महावीर भी धराशाई हो जाएगा,
चाहे गुरु परशुराम हो
अधर्म कभी जीत नहीं पाएगा।
अरे आज जब बात होगी इस युद्ध की
इतिहास सो जाएगा,
मिथ्या बातों के आधार पर
कर्ण निहत्था हो जाएगा।
क्यों ऐसे ऐसे झूठ
खुद के इतिहास में फैला रहे,
कुछ ज्ञान जला नालंदा में
कुछ को तुम जला रहे।
अरे धर्म और अधर्म की
वीरता को मापना ही व्यर्थ है,
धर्म संगत होना ही सबसे पहले
वीरता का अर्थ है।
हारा था अधर्म द्वापर में
हारेगा आज भी,
अरे सत्य का सदा से ही राज था
करेगा राज आज भी।
जिस पक्ष में नारायण थे
उस पक्ष में हम आज भी,
और जिस पार्थ पर माधव को नाज़ था
उस पर हमें है नाज़ आज भी।
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