।।श्री घंटा कर्ण चालीसा ।। समकित वंत महाबली धनुष बाण है हाथ।
संकट चूरे दुख हरे भक्तन को दे साथ। वीर बड़ा महावीर बखानू।
अंतः करण से शीश नवाऊं मनमंदिर मोहि पधराऊ घंटाकर्ण चालीसा गाऊं
अरिदमन राजा दरसाई समरांगन के मोहि आई सांध्यकाल लालिमा छाई घंटाराव का शब्द सुनाई
दोनो बीच है युद्ध युद्धाई
खींचा तीर है बाण बढ़ाई वीरगति अंते उपजाई
बाण व्यंतरी सुर गति पाईं अवधी ज्ञान पूर्व भव जाना समकित वंत बना मतवाला जिनशासन का रक्षक धोरी वंदन करूं हाथ बे जोड़ी।
नाम तुम्हारा अंतर ध्यावे
जीवन में संकट नहीं आवे
दुख दरिद्रता दूर भगावे सतचित आनंदमय बन जावे भक्तजनों का तू हित कारा।
जैन धर्म का पूर्ण प्रचारा ।
श्रद्धा सुमन चढ़ाने आते
महुड़ी में आकर गुण गाते।
भूत पिशाच व्यंतरि आवे तेरे नाम से झट भग जावे। याल व्याल विकराल जावे
अंतर में ज्योति प्रगट आवे।
जादू टोना या नजराना
जीवन में नहीं ताना-बाना।
एक सहारा वीर तुम्हारा प्रतिफल देना साथ हमारा।
रोगजल जलंधरऔर भगंदर
तीन ताप भय भरा समंदर।
इन सब को तू दूर निवारे।
भक्तन की वीर चढ़ आवे ।
कोढ़ कराल का दाग मिटाने विषधारी विष दूर भगावे।
जीवन जन आदर्श बनावे
जन जन के झट भाग्य जगावे।
राज्य विपत्ति सिर पे ना छावे बंधन का कोई जोर ना जतावे। जय जय मंगल लीला पावे
घंटा कर्ण वीर गुण गावे।
शक्तिशाली वीर कहावे
रिद्धि वृद्धि भंडार भरावे ।
पुत्र पौत्र धन-धान्य सुहावे कलिमल कर मेल मिट जावे।
मुकुट मनोहर सर पर छाजे कानों में कुंडल अभिराजे।
हार हुसीलो गलविच माहे।
दिव्य देव श्रृंगार संजोटे ।
वीर खड़ा है वीरासन में।
भव्य माल मलके आनन में
वीर है बावन तेरे सखाई
सब सिद्धि तुझ में है समाई ।
जिनशासन का रक्षक तू है साधर्मी का साधन तू है।
नित उठ तेरी सेवा सजाऊ हरदम अपने मन में बसाऊं।
नाम लिया सिद्धि मिल जावे मनवांछित इच्छित फल पावे। महामंत्र चालीसा तुम्हारा।
प्रबल पुण्य बढ़ता धन सारा ।
विजय पताका फहरा जग में जय-जय कीर्ति बढ़े रग रग में। आशा पूरे सहूजन मन की
पीड़ा दूर होय सब तन की।
मृत्यु लोक में विचरे विहारी तेरी शोभा अपरंपाररी । सच्चा दिल सुन ध्यान धरणता भवसागर से तिमिर हटनता। धीर वीर गंभीर उदारा
तेरे द्वारा धर्म प्रचारा
नित उठ जो चालीसा गावे।
वह नर वांछित फल ने पावे
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