Its the Folk Dance of Bundelkhand, Madhya Pradesh, India.
नर्तकी यह नृत्य करते हुए, अपनी शरीर को इस प्रकार लोच और रूप देती है कि बादलों की गड़गड़ाहट पर मस्त होकर नाचने वाले मोर की आकृति का आभास मिलता हैं। इसका लहंगा सात गज से लेकर सत्तरह गज तक घेरे का हो सकता है। मुख्य नृत्य मुद्रा में अपने चेहरे को घूॅघट से ढंककर लहंगे को दो सिरों से जब नर्तकी अपेन दोनों हाथों से पृथ्वी के सामानान्तर कन्धें तक उठा लेती है, तो उसके पावों पर से अर्द्ध चन्द्राकार होकर, कन्धे तक उठा यह लहंगा नृत्यमय मयूर के खुले पंखों का आभास देता हैं। नृत्य में पद संचालन इतना कोमल होता हे कि नर्तकी हवा मेें तैरती सी लगती है। इसमें ताल दादरा होती है। पर अन्त में कहरवा अद्धा हो जाता है साथ में पुरूष वर्ग लोग धुन गाता है। नृत्य की गति धीरे-धीरे तीव्र होती जाती है। राई में ढोलकिया की भी विशिष्ट भूमिका होती है। एक से अधिक छोलकिए भी नृत्य में हो सकते है। ढोलकिए नाचती हुई नर्तकी के साथ ढोलक की थाप पर उसके साथ आगे-पीछें बढ़ते हैं, बैठते हैं, चक्कर लगाते हैं। नृत्य चरम पर ढोलकिया दोनों हाथों के पंजों पर अपनी शरीर का पूरा बोझ सम्भाले हुए, टांगे आकाश की ओर कर, अर्द्धवाकार रेखा बनाकर आगे-पीछे चलता है। इस मुद्रा मे इसे बिच्छू कहा जाता है। राई नृत्य में नर्तकी की मुख्य पोशाक-लहंगा और ओढ़नी होती है वस्त्र विभिन्न चमकदार रंगों के होते है। दोनों हाथों में रूमाल तथा पांवों में घूॅघरू होते हैं। पुरूष (वादक) बुन्देलखण्डी पगड़ी, सलूका और धोती पहनते हैं राई के मुख्य वाद्य ढोलक, डफला, झींका, मंजीरा, तथा रमतुला है। इस लोक नृत्यों को बचाने के लिए बुन्देलखण्ड में ही लोक संस्कृति केन्द्र की स्थापना जरूरी है। तभी बुन्देली लोक गीत नृत्य, तथा लोक वाद्य सुरक्षित और संरक्षित रह सकेगें।
#Rai, #Bundelkhand, #AshwaniKhajuraho
Ещё видео!